सीख
मैंने आज उस हिमालय को देखा,
उसकी ऊंचाइयों पर जाने का सपना देखा
पर मार्ग में आने वाली बाधाओं से न जाने क्यों डर गई मैं?
चलते-चलते न जाने क्यों बार-बार आज गिरने लगी मैं?
पर,
जब उस नन्ही चींटी को ऊपर चढ़ते देखा,
विश्वास से सारी बाधाओं को लड़ते देखा,
मैंने उसे बार – बार गिरते और फिर ऊपर चढ़ते देखा
बिना किसी मुश्किलों और दुखों को महसूस किए मस्ती में जी रही थी वो, चलती जा रही थी वो,
अपने विश्वास को जीत गई वो, सारी मुश्किलों से लड़ गई वो
हिमालय की ऊंचाइयों पर आज चढ़ गई वो
किसी का साथ न था तो क्या हुआ?
फिर भी मुझे अकेले ही हिमालय की ऊंचाइयों पर जाने की सीख दे गई वो,
मेरे डर को गिरा, ऊंचाइयों पर जाने का विश्वास दे गई वो,
मुझे एक नई सीख और जीवन जीने का आश्वासन दे गई वो,
मेरी दुःख भरी जिंदगी में जीने की चाह दे गई वो,
मेरे हिमालय के सपने को आज पूरा कर गई वो,
वो चींटी नहीं देखो मेरी कविता बन गई वो |
I am Divya Garg from the Indian state of Delhi, and I am pursuing my Fifth degree as PhD in education. I am a happy person who loves to write Hindi poems and a well-trained Hindi teacher.
very nice poetry. 👌👌
very beautiful poem