हाय! कैसी ये बीमारी
हाय! कैसी ये बीमारी ख्वाहिशों की गर्मियों में,तप रहीं साँसें तुम्हारी,हाय! कैसी ये बीमारी – २!रात दिन में खेल खेलूं,और कभी मन से भी बोलूं,भोख क्यों इतनी बढ़ा ली,जो की में हूँ तुझ पर भारीहाय! कैसी ये बीमारी – २!ख्वाहिशें मैं हूँ ववण्डर,उठती-गिरती मन के अंदर,मौन तुम दिखते तो हो पर,सोचते अपनी लाचारीहाय! कैसी ये […]
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