लक्ष्य की जयकार कर
लक्ष्य की जयकार कर विशाल हिमगिरि के शिखर को,लक्ष्य जब मैंने बनायागर्व से उन्मादित होकर,मुझको उसने ललकारा ।बोला! प्रबल हूँ, प्रशस्त हूँ,अजेय, अमर हूँ।कण-कण से मेरा यह तन,बना विशालकाय हूँ |असंख्य वेदना को साध लिया,अनेकों आमोद का त्याग किया |तब जाकर पर्वतराज बना हूँ,आर्यावर्त का पहरेदार बना हूँ |गर है दम तेरी भुजाओं में,तब रखना […]