Hindi Poetry

दुनिया, a poetry by Minkal Narula

दुनिया

दुनिया नशा होता नहीं नशा करना पड़ता हैइस दुनिया में सबसे संभल के चलना पड़ता हैकौन किसका है ये बात कोई नहीं जानता हैएक ऊपर वाला ही है जो सबको अच्छे से पहचानता हैसीख तो हमें वक्त देता है कदर न पाकर भी सबको हक देता हैपर रुकता नहीं वो किसी की बेकद्री या कदर […]

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नसीब, poetry by Minkal Narula

नसीब

नसीब जानती हूं मुश्किल हैपर सबका यही नसीब है।जो आता है एक बारउसके जाने की भी लकीर है।जो जमीन पर लाखो का प्यारा हैउससे खुदा भी उतना ही प्यार करेगाइस दुनिया में इतना ही थाअब वो खुदा के घर रहा करेगा।जानती हूं आसान नहींपर नियम चला आ रहा हैजुदाई का यह सिलसिलाबहुत मुश्किल होता जा

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कृष्ण-द्रौपदी संवाद, a poetry by Shalini Singh

कृष्ण-द्रौपदी संवाद

कृष्ण-द्रौपदी संवाद हे कृष्ण सखा बल्दाई,मेरे पालनहार कन्हाई।मैं सखी तुम्हारी कृष्णा,चाहती तुमसे कुछ कहना ।जिस सभा कलंकित में तुमने,सम्मान को मेरे बचाया था।नारी को गरिमा का कान्हा,हां मान तुम्हीं ने बढ़ाया था।तब दृढ़ विश्वास हुआ मुझको,तुम सचमुच सबके रक्षक हो।पापियों के काल हो तुम,सर्वनाशक हो, भक्षक हो ।पर प्रश्न है मेरे मन में उठा,होता है

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स्त्री, a poetry by Himanshi Gautam

स्त्री

स्त्री स्त्री मात्र शब्द नही है ईश्वर कीसब कृतियो मे है सबसे खूबसूरत कृतिकिसी के घर आंगन की तुलसी हैतो किसी की बगिया का गुलाब हैस्त्री है तो संसार है स्त्री है तो संस्कार हैस्त्री मात्र मानव नही, करुणा, ममतासहनशीलता, दया, प्रेम, गरिमा की देवी हैस्त्री है गर पावन धरा पर, सरस्वती, लक्ष्मीतो है दुर्गा,चंडी,काली

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इंसान और इंसानियत, a poetry by Soma Roy

इंसान और इंसानियत

इंसान और इंसानियत इंसान कौन हैं? इंसानियत क्या है?जो इंसान से सिर्फ प्यार करे?या जो इंसानियत पर कब्जा करे?अपनो से प्यार करना आसान हैखून का रिश्ता निभाना भी जायज हैपर जो अपनो से परे भी किसी को अपनाएउसे हम और क्या कहे?पौधो की जो भाषा समझेबेजुबान की जो आदत समझेसमझे जो दर्द किसी लाचार काउसी

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तुषारिका, a poetry by Asambhava Shubha

तुषारिका

तुषारिका कोई फर्क होगा संपत्ति और जिम्मेदारी में,एक संजोयी और दूसरी निभायी जाती है,वैसे कई रंग हैं इन् दोनों की भिन्नता को दर्शाते हुए,और समरूपता शायद एक- मूल ।जनन की मूल जननी, अथवा प्रजनन की स्रोत ज्वाला,प्रकृति की संगिनी, जिसने वात्सल्य और प्रेरणा को अटूट बंधन में है बाँधा ;वो कभी वृक्षों को आलिंगन में

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नारी शक्ति, poetry by Manisha Chauhan

नारी शक्ति

नारी शक्ति वो सौ जख्म खाकर भी सब सहती हैवो नारी है जो ना कभी डगमगाती हैमाथे पर बिंदी, मांग में सिन्दूरलगाके वो जगमगाती है।वो नारी है जो कभी ना घबराती हैसाहस इतना देखो हर कोई देखेघबराते हैंवो नारी है जो कभी ना मात खाती हैवो जब अपने पर बन आये तो अपने देश या

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तीन रंग से बनता है, Poetry by Sudhir Kumar Pal

तीन रंग से बनता है

तीन रंग से बनता है तीन रंग से बनता है,और चौथे से फिर सजता है…जय घोष भारत माता का,इसके सीने में गरजता है…तू चाहे कितना लाल करे,मेरे खून से इसके आँचल को,ये रखता है रंग केसररया,जो हर पल और निखरता है…तू काला कितना दामन कर,कितना ही इसे तू तार कर,ये रखता है रंग बिलकुल चिट्टा,चारों

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कुल्हाड़ी से कलम तक by Shalini Singh

कुल्हाड़ी से कलम तक

कुल्हाड़ी से कलम तक इक रोज़ बैठी गलियारों से,देखा था उसे चौराहे पर ।हो दूर उजाले से बहुत,देखा था उसे अंधियारे पर।उसकी भुजाओं की ताकत में,मुझको मां दुर्गा दिखती थी।उसकी मेहनत की परिभाषा,साहसी, वीरांगना दिखती थी।अपने कपाल की ताकत से,वो ढोती थी बालू मिट्टी |पीड़ा को छिपा दुःख दर्द बहा,न रोती थी, न खोती थी।जो

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आख़िरी किरण by Raj Shukla

आख़िरी किरण

आख़िरी किरण बेरंग सी इस जिंदगी में, भर गयावो रंग हो तुम,दूरियां भी है बहुत यूं,उन दूरियों का संग हो तुम ।दिल भी मेरा क्या करे,इस प्यार का मलंग हो तुम,आवेश में-जिसके हम बहे,वो एक नई तरंग हो तुम ।हूं अव्यवस्थित मैं अगर तो,जीने का एक ढंग हो तुम,ना-माशुका ना-प्रेमिका हो,मेरे-देह का एक अंग हो

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