Hindi Poetry

आदत, a poetry by Sheena Sarah Winny

आदत

आदत बनाकर खुशी को आदतजिंदगी बनेगी सुहानीदिन नहीं कटतीजंजीरों से दबकर ।रेत के जैसीखुशी के पलसमेटे रखोहीरे की तरह –आदत न छोड़नाजिंदगी को पिरोनासुरों की अनदेखी तार से ।खुशहाली आएमन के प्याले सेछलके जब खुशीसावन की बूंदें जैसी। Sheena Sarah WinnySheena Sarah Winny is an educator, writer and poet. gyaannirudra.com/

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ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो, a poetry by Kuntal Sanjay Chaudhari

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो

ऐसे मुंगेरीलाल कहलायी थी वो ज़िन्दगी के दायरे में लिपटी थी वो,किसी तोहफे से कम नहीं थी वो।सूरज के किरणों को छूकर रोज,अपने ख्वाबों को बुनती थी वो।कभी पूरे हों, इसकी उम्मीद तो नहीं,पर सपने देखने की चाह रखती थी वो।रात को करवटे बदलते हुए,उस एक दिन की राह देखती थी वो।हवा में झूमते हुए,अपने

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नारी और समाज एक परिचय, a poetry by Shivam Tiwari

नारी और समाज : एक परिचय

नारी और समाज : एक परिचय ए नारी तू साड़ी पहने ,प्रतीत होती सजीव है क्यासहती है तू दुर्व्यवहार ,लगता है निर्जीव है क्याचली अलंकृत होकर ऐसे ,प्रतीत हुआ सजीव है क्यासहती जब तू अत्याचार ,लगता है निर्जीव है क्या देवी नारी, माता नारी ,फिर से लगा तू सजीव है क्याआंखों से जब स्वप्न हटा

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अकेला बगुला, a poetry by Gaurav Kumar

अकेला बगुला

अकेला बगुला देखा एक शाम एक बगुले कोआकाश में अकेले उड़ते,ना जाने क्या पाने की ज़िद लिएहवा के विरुद्ध मुड़ते!छोड़ा इसके साथियों ने है इसका साथ,या ना रख पाया उनके बीच ये अपनी बात!सोचता हूँ,काफिर बन उड़ चला है,या बना अपने मन का जोगी,ना जाने काफिले से अलग होने कीक्या वजह रही होगी!शायद नए मानसरोवर

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ऐसी तू बांसुरी, a poetry by Nikhil Tewari

ऐसी तू बांसुरी

ऐसी तू बांसुरी ऐसी तू बांसुरी। सीधी सरल सुरीली तू। कर्णप्रिय रसीली तू। ऐसी तू बांसुरी। होंठों से छुई तू। हृदये में बस गयी तू। ऐसी तू बांसुरी। मेरी वन्दनी तू। कृष्ण की संगनी तू। ऐसी तू बांसुरी। पंचतत्व से बनी तू। देव लोक की ध्वनि तू। ऐसी तू बांसुरी। मेरा ध्यान तू मेरा योग

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कलि की सुन्दरता, a poetry by Jishnu Trivedi

कलि की सुन्दरता

कलि की सुन्दरता एक बाग मै एक दिन कलि लगी,सुंदर, मनमोहक कलि लगी।नाजुक सी वो, कोमल थी वो, नन्ही सीसबको प्यारी थी वो ।पवन से शान से लहरातीना अधेड पत्तो सी गिर जाती वो । एक बाग मै एक दिन कलि लगी,सुंदर, मनमोहक कलि लगी।न जाने वह अपने आप ही एक दिन खिल उठी ।न

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जिंदगी - a poetry by Sheetal Sharma

जिंदगी

जिंदगी ए जिंदगी क्या है तू,वसंत में खिली सरसों की पीली फसल सी लहराती है तू,कभी नवजात शिशु की पहली किलकारी में गाती है तू,ग्रीष्म ऋतु में तपती धूप सी इठलाती है तू,कभी युवा के भीतर दृढ़ निश्चय को छलकाती है तू,पतझड़ में गिरे भूरे पत्तों की धीरता को दर्शाती है तू,कभी मध्य आयु की

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आज की नारी, a poetry by Neelam Chhibber

आज की नारी

आज की नारी कहने को बहुत नाम है मेरे देवी, मां, बहन और बेटी।किस्से, कहानी और किताबों में, ये दुनियां सम्मान बहुत है देती ।ख्यालों और कहानी से निकालकर जमीं पर इसको लाना होगा |नारी किसी पुरुष से कम नहीं, इसको हकीकत में दिखलाना होगा |तुम महिला हो, तुम अबला हो, तुम बच्ची हो, रहने

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मां ऐसी ही होती है, a poetry by Prexa Dharmendrabhai Shah

मां ऐसी ही होती है…

मां ऐसी ही होती है… कोख में पल रहा बेटा तो बातें शान कि होती है,लेकिन मां के लिए बेटी भी बेटे के समान होती हैं,यह दुनिया तो अक्सर कहेंती हैं कि वह मां है,और हर मां बस ऐसी ही होती हैं….मेंरे में संस्कार का पहला बीज सिर्फ वे बोती है,मेरे गीले किये हुए बिस्तर

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होली कहें या प्रेम के रंग, a poetry by Neelam Chhibber

होली कहें या प्रेम के रंग

होली कहें या प्रेम के रंग प्रेम के रंग में सरोबार गुलाबी रंग,शांति के गहरे सागर में डूबा हरा रंग,शरारत और नजाकत से खिलखिलाता लाल रंग,उल्लास, ख़ुशी और आनंद से भरा होली का हर एक रंग ।एक पर दूसरा, दूसरे पर तीसरा, रंग के ऊपर रंग चढ़ा,सोने पर सुहागा, भांग का वो लोटा बना ।हंसने

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