आलोचना
आलोचना से कर्ण-पट को बंद करके क्या मिलेगा? अश्रुओं से “चक्षुओं” को द्रवित करके क्या मिलेगा? विरहाग्नि का दमन कर,उपलब्धियां तुझमें बहुत हैं आलोचना को सहन कर,खूबियां तुझमें बहुत हैं कायर नहीं, तुम वीर हो, दमनात्मक शमशीर हो दुःशासन को खींचने दो, कृष्ण का तुम “चीर” हो “आलोचना इक जौहरी” प्रतिभामयी हीरा तराशे भावना को […]